उस शोख़ ने निगाह न की हम भी चुप रहे
हम ने भी आह आह न की हम भी चुप रहे
आया न उनको अहद मुलाक़ात का लिहाज़
हम ने भी कोई चाह न की हम भी चुप रहे
देखा किये हमारी तरफ बज़्म-ए-ग़ैर में
तज्दीद-ए-रस्मो-राह न की हम भी चुप रहे
था ज़िन्दगी से बढ़ के हमें वज’अ का ख़याल
जब उम्र ने निबाह न की हम भी चुप रहे
खामोश हो गईं जो उमंगें शबाब कीं
फिर जुरअत-ए-गुनाह न की हम भी चुप रहे
मगरूर था कमाल-ए-सुखन पर बहुत ‘हफीज’
हम ने भी वाह वाह न की हम भी चुप रहे
– हफीज जालंधरी
(A Ghazal by famous Urdu poet Hafeez Jalandhari)
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