बेटी शादी के मंडप में या ससुराल जाने पर पराई नही लगती ।।
जब वह मायके आकर हाथ-मुँह धोने के बाद बेसिन के पास टंगे नैपकिन के बजाय,अपने बैग के छोटे से रुमाल से मुँह पोंछती है तब वह पराई लगती है ।।
जब वह रसोईं के दरवाजे पर अपरिचित सी ठिठक जाती है जब वह पानी के ग्लास के लिए इधर-उधर आँखे घुमाती है तब वह पराई सी लगती है।।
जब वह पूछती है मम्मी वाशिंग मशीन चला कर कपडे धो लूँ क्या???
तो वह पराई सी लगती है।
जब वह टेबल पर खाना लगने के बाद भी उत्सुकता से खाने के बर्तन खोल कर नही देखती तब वह पराई सी लगती है ।।
जब वह पैसे गिनते समय अपनी नजर चुराती है तब वह पराई सी लगती है ।।
जब बात-बात पर अनावश्यक ठहाके लगाकर खुश होने का नाटक करती है तब वह पराई सी लगती है ।।
और लौटते समय,,,
“अब कब आयेगी” के जवाब में “देखो कब आना होता है” यह जवाब देती है
तब वह हमेशा के लिए पराई सी हो गई सी लगती है ।।
“लेकिन”
जब गाड़ी में बैठने के बाद
वो चुपके से अपनी आँखों की पलकों को छिपाकर पोंछने की कोशिश करती है,तो वह परायापन एक झटके में बह जाता है।।।
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