आज ध्यान में बैठा जब, तो मन में कौंधे कुछ सुविचार
जीवन संचालन करना होगा चार उपलब्धियों के अनुसार।
जीवन संचालन करना होगा चार उपलब्धियों के अनुसार।
“विवेक”,” वैराग्य” , “सदाचार” व “मुमुक्षत्व ”
यही वास्तविकता में आत्म ज्ञान के सच्चे तत्त्व।
यही वास्तविकता में आत्म ज्ञान के सच्चे तत्त्व।
“विवेक” अर्थात सत्य असत्य , उचित अनुचित का भेद
“वैराग्य” अपनाना होगा करके भौतिकता से खेद।
“वैराग्य” अपनाना होगा करके भौतिकता से खेद।
“सदाचार” के भाग चार , कर्म योग व मन अधिकार ,
ईश्वर कृपा पर विश्वास , एकाग्रता का आधार।
ईश्वर कृपा पर विश्वास , एकाग्रता का आधार।
यह सब होकर भी यदि “मुमुक्षत्व” का न हो अंतर्भाव
तब होंगी पहली तीन उपलब्धियां बहुतांशी निष्प्रभाव।
तब होंगी पहली तीन उपलब्धियां बहुतांशी निष्प्रभाव।
“मुमुक्षत्व” दैनिक जीवन में माना जाता है स्नेह व् प्रेम
इसके अंग तीन – अहिंसा, सेवा व मानव कुशल क्षेम।
इसके अंग तीन – अहिंसा, सेवा व मानव कुशल क्षेम।
प्रेम देगा अवसर ईश्वरीय नियोजन में सेवक बनने हेतु
व् जगत जननी चरणों में जीवन समर्पित करने हेतु।
व् जगत जननी चरणों में जीवन समर्पित करने हेतु।
गुरुजनों से जब चर्चा की तो उन्होंने विस्मय पूर्वक बतलाया
यह “प्रयत्न ” ही शंकराचार्य का “साधन चतुष्टय” है कहलाया।
यह “प्रयत्न ” ही शंकराचार्य का “साधन चतुष्टय” है कहलाया।
यदि धर्म ग्रन्थ न हों उपलब्ध , पर रम सको सत्य के चिंतन में
आध्यत्म ज्योति होगी साकार , स्थिर होगे स्वयं ही आत्म बोध में।
आध्यत्म ज्योति होगी साकार , स्थिर होगे स्वयं ही आत्म बोध में।